पंचायती राज
पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम, तालुका और जिला आते हैं। भारत
में प्रचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं। आधुनिक
भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरू द्वारा
राजस्थान के
नागौर जिले में २ अक्टूबर १९५९ को पंचायती राज व्यवस्थ लागू की गई।
संवैधानिक प्रवधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद ४० में राज्यों को
पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया हैं। १९९३ मैं संविधान में
७३वां संविधान संशोधन अधिनियम, १९९२ करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गयी हैं।
- बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें (1957) -
- अशोक मेहता समिति की सिफारिशें (1977) -
पंचायती राज पर एक नजर
23 अप्रैल 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण
मार्गचिन्ह था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के
माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संबैधानिक दर्जा हासिल कराया गया और इस
तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की
दिशा में कदम बढ़ाया गया था।
73वें संशोधन अधिनियम, 1993 में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं:
एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत)
ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की स्थापना
हर पांच साल में पंचायतों के नियमित चुनाव
अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण
महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण
पंचायतों की निधियों में सुधार के लिए उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्ता आयोगों का गठन
राज्य चुनाव आयोग का गठन
73वां संशोधन अधिनियम पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में काम
करने हेतु आवश्यक शक्तियां और अधिकार प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को
अधिकार प्रदान करता है। ये शक्तियां और अधिकार इस प्रकार हो सकते हैं:
संविधान की गयारहवीं अनुसूची में सूचीबध्द 29 विषयों के संबंध में
आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना और उनका निष्पादन
करना
कर, डयूटीज, टॉल, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार
राज्यों द्वारा एकत्र करों, डयूटियों, टॉल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण
ग्राम सभा
ग्राम सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गांवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
गतिशील और प्रबुध्द ग्राम सभा पंचायती राज की सफलता के केंद्र में होती है। राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे:-
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार ग्राम सभा को शक्तियां प्रदान करें।
गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर
देश भर में ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए पंचायती राज कानून में
अनिवार्य प्रावधान शामिल करना।
पंचायती राज अधिनियम में ऐसा अनिवार्य प्रावधान जोड़ना जो विशेषकर ग्राम
सभा की बैठकों के कोरम, सामान्य बैठकों और विशेष बैठकों तथा कोरम पूरा न
हो पाने के कारण फिर से बैठक के आयोजन के संबंध में हो।
ग्राम सभा के सदस्यों को उनके अधिकारों और शक्तियों से अवगत कराना ताकि
जन भागीदारी सुनिश्चित हो और विशेषकर महिलाओं तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के
लोगों जैसे सीमांतीकृत समूह भाग ले सकें।
ग्राम सभा के लिए ऐसी कार्य-प्रक्रियाएं बनाना जिनके द्वारा वह ग्राम
विकास मंत्रालय के लाभार्थी-उन्मुख विकास कार्यक्रमों का असरकारी ढंग़ से
सामाजिक ऑडिट सुनिश्चित कर सके तथा वित्तीय कुप्रबंधन के लिए वसूली या सजा
देने के कानूनी अधिकार उसे प्राप्त हो सकें।
ग्राम सभा बैठकों के संबंध में व्यापक प्रसार के लिए कार्य-योजना बनाना।
ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए मार्ग-निर्देश/कार्य-प्रक्रियाएं तैयार करना।
प्राकृतिक संसाधनों, भूमि रिकार्डों पर नियंत्रण और समस्या-समाधान के संबंध में ग्राम सभा के अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करना।
73वां संविधान संशोधन अधिनियम ग्राम स्तर पर स्व-शासन की संस्थाओं के
रूप में ऐसी सशक्त पंचायतों की परिकल्पना करता है जो निम्न कार्य करने में
सक्षम हो:
ग्राम स्तर पर जन विकास कार्यों और उनके रख-रखाव की योजना बनाना और उन्हें पूरा करना।
ग्राम स्तर पर लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना, इसमें स्वास्थ्य,
शिक्षा, समुदाय भाईचारा, विशेषकर जेंडर और जाति-आधारित भेदभाव के संबंध में
सामाजिक न्याय, झगड़ों का निबटारा, बच्चों का विशेषकर बालिकाओं का कल्याण
जैसे मुद्दे होंगे।
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पंचायती राज
कहने
को गांवों में पंचायती राज लागू है। सरकार पंचायती राज के आंकड़े़
गिनाते-गिनाते नहीं थकती। लेकिन सरकार में ही बैठे लोग अलग से यह कहने से
नहीं चूकते कि देखिए! पंचायती राज किस तरह भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है।
उनके लिए यह लोकनियंत्रित प्रशासन को असफल बनाने का माध्यम बन गया है।
वस्तुत: अभी जो प्रधान या मुखिया बनाए गए हैं उनकी स्थिति मिनी एम.एल.ए.
जैसी ही है। जिस तरह एम.एल.ए. पर जनता का नियंत्रण पांच साल में एक बार वोट
डालने तक सीमित है उसी तरह गांव में आम जनता की प्रधान के ऊपर कुछ नहीं
चलती। कानून के मुताबिक गांव सभा की बैठकें होनी चाहिए लेकिन प्रधान को उसी
कानून में इतनी छूट है कि वह अपने कुछ भ्रष्ट साथियों के साथ मिलकर सब
खानापूर्ति कर देते हैं। दूसरी तरफ अगर कोई प्रधान ईमानदारी से काम करना
चाहे तो उसे इलाके के बीडीओ, एसडीओ, सीडीओ काम नहीं करने देते। गांव के फंड
पर इन लोगों का शिकंजा इतना खतरनाक है कि वे चाहें तो गांव की ओर एक पैसा न
जाने दें। प्रधान अगर इनके साथ मिलकर बेईमानी करे तो सब कुछ आसान है और
अगर ईमानदारी से काम कराना चाहे तो ये उसकी फाइल आगे न बढ़ाएं। इसीलिए
ईमानदार से ईमानदार प्रधान भी अपने गांव के फंड को इन अफसरों के चंगुल से
नहीं छुटा सकता।ऐसा नहीं है कि देश में ईमानदार लोग प्रधान नहीं चुने जाते
हैं। लेकिन देश भर के अनुभवों से यह देखा गया है कि सिर्फ वही ईमानदार
प्रधान इन अफसरों की मनमानी पर अंकुश लगा पाए हैं जो वास्तव में अपने सारे
फैसले ग्राम सभा में लेते हैं। हालांकि ऐसे प्रधानों की संख्या बेहद सीमित
है, लेकिन इनके उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि पंचायती राज को सफल
बनाने के लिए उसमें ग्राम सभाओं को किस तरह की कानूनी ताकत चाहिए।
लोकराज आंदोलन (स्वराज अभियान) द्वारा समाज, सरकार और कानून के जानकारों
के साथ गहन विमर्श के बाद पंचायती राज कानूनों में आवश्यक संशोधन के लिए यह
दस्तावेज़ तैयार किया है। इसमें ग्राम सभाओं को मजबूत बनाने के लिए
यथासंभव मजबूत कानून की अवधारणा स्पष्ट की गई है-
- वे
सभी कार्य जो गांव में किए जाने हैं और जिसका अंतरसंबन्ध् किसी अन्य ग्राम
से नहीं है, गांव के स्तर पर ही किए जाएं। (ग्राम पंचायत) वे कार्य जो
गांव के स्तर पर नहीं किए जा सकते और जिनका संबन्ध् ऐसे काम जो इस स्तर पर
नहीं हो सकता और जिनका संबंध् अन्य गांवों से भी है, उन्हें ब्लॉक स्तर पर
किया जाए। (ब्लॉक पंचायत) और जो काम ब्लाक स्तर पर नहीं किए जा सकते और
जिनका संबन्ध् एक से अधिक ब्लाक से हो, उन्हें जिला स्तर पर किया जाए
(ज़िला पंचायत)। और जो कार्य ज़िला स्तर पर नहीं हो सकते उन्हें राज्य स्तर
पर किया जाए (राज्य सरकार) शासन के हरेक स्तर के लिए ऐसे कार्य की एक
सूची बना ली जाए। साथ ही किसी कार्य से सम्बंधित सभी कर्मचारी और धनराशि
सम्बंधित स्तर की शासन इकाई के अधीन होगी।
- इसी
तरह, सड़क, गलियां, जन शौचालय इत्यादि जो पूरी तरह किसी एक गांव की सीमा
के भीतर हों, उसकी देख-रेख की जिम्मेदारी ग्राम स्तर पर दी जाए। ऐसी
संपत्ति जिसका संबंध् एक से ज्यादा गांव से हो, उसकी जिम्मेवारी ब्लॉक को
दी जाए। और अगर ऐसी संपत्ति एक से ज्यादा ब्लॉक से सम्बंधित हो तो उसकी
ज़िम्मेदारी ज़िला स्तर पर दी जाए तथा एक से अधिक ज़िलों से सम्बंधित होने
की स्थिति में उसके रखरखाव आदि की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार निभाए। शासन के
हरेक स्तर के लिए ऐसी तमाम तरह की संपत्तियों की एक सूची बना ली जाए और
इससे सम्बंधित सभी कर्मचारियों, संपत्ति और फंड को सम्बंधित स्तर को सौंप
दिया जाए।
-
सभी संस्थाएं जैसे स्कूल, अस्पताल, दवाखाना इत्यादि जो किसी एक गांव के
निवासियों के लिए है उसे केवल उस गांव के द्वारा ही चलाया जाए। एक से
ज्यादा गांव से सम्बंधित संस्थाओं को ब्लॉक चलाए और एक से ज्यादा ब्लॉक से
सम्बंधित संस्थाओं को जिला और एक से ज्यादा जिलों से सम्बंधित संस्थाओं को
राज्य द्वारा चलाया जाए। शासन के हरेक स्तर के लिए ऐसी संस्थाओं की एक सूची
बना ली जाए और इससे सम्बंधित सभी कर्मचारियों, संपत्ति और फंड को सम्बंधित
स्तर को सौंप दिया जाए।
- राज्य
के राजस्व का कम से 50 प्रतिशत हिस्सा, एकमुश्त राशि के रूप में तथा किसी
योजना विशेष से संबद्ध किए बगैर ही, सीधे ग्राम पंचायतों को दिया जाए।
गांव, ब्लॉक और जिला स्तर की व्यवस्था से सम्बंधित राज्य सरकार की योजनाएं
खत्म कर दी जाएं तथा पंचायतों के लिए एकमुश्त राशि प्रदान की जाए।
- ग्राम
स्तर पर सभी निर्णय ग्राम सभा द्वारा ही लिए जाएंगे। ग्राम सभा द्वारा लिए
गए फैसलों के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी ग्राम सचिव ही होगी। ग्राम सचिव
की नियुक्ति, ग्राम सभा द्वारा की जाएगी। ग्राम सभा के निर्णय अंतिम माने
जाएंगे, यदि उस निर्णय में कोई तकनीकी त्रुटि न हो या उससे किसी कानून का
उल्लंघन न होता हो। यदि ग्राम सभा के किसी निर्णय को ले कर कोई कानूनी
विवाद होता है तो इसका निपटारा लोकपाल (ओंबड्समैन) द्वारा किया जाएगा।
- ग्राम
सभा की बैठक, महीने में कम से कम एक बार अवश्य होगी। बैठक का एजेंडा सचिव
द्वारा तय किया जाएगा और बैठक से एक सप्ताह पहले ग्राम सभा के सभी लोगों के
बीच इसे वितरित किया जाएगा। ग्राम सभा के सदस्य यदि किसी मुद्दे को एजेंडे
में डलवाना चाहें तो बैठक से दस दिन पहले लिखित या मौखिक तौर पर सचिव को
दे सकता है। प्रत्येक बैठक की शुरुआत में आपसी सहमति से यह तय किया जाएगा
कि मुद्दों पर विचार विमर्श एवं चर्चा का क्रम क्या होगा।
- सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण: इस व्यवस्था में दो तरह के कर्मचारी होंगे:
- वे कर्मचारी जिनकी नियुक्ति अलग-अलग स्तर के शासन, यथा ग्राम पंचायत, ब्लॉक पंचायत, ज़िला पंचायत आदि द्वारा ही सीधे की गई हो।
- वे
कर्मचारी जिनकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की गई थी (लेकिन नई व्यवस्था
के तहत) उन्हें ग्राम, ब्लॉक या ज़िला शासन व्यवस्था के अधीन स्थानांतरित
कर दिया गया है। गांव, ब्लॉक या जिला शासन व्यवस्था के अधीन ऐसे कर्मचारी
के सेवानिवृत्त होने की स्थिति में उसकी जगह नई नियुक्ति सम्बंधित शासन
व्यवस्था के द्वारा की जाएगी।
ग्राम सभा द्वारा निम्नलिखित रूप में सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण किया जाएगा-
ग्राम
सभा, गांव, ब्लॉक या जिला स्तर के किसी भी कर्मचारी के कामकाज से असंतुष्ट
होने पर, उसे सम्मान जारी कर सकती है तथा निम्न कदम उठा सकती है-
(क) कर्मचारी को सम्मन जारी कर ग्राम सभा की बैठक में बुलाना तथा उससे स्पष्टीकरण मांगना।
(ख)
उपरोक्त स्पष्टीकरण से असंतुष्ट होने की स्थिति में ग्राम सचिव के माध्यम
से सम्बंधित कर्मचारी को निर्देश लिखित चेतावनी जारी करना। यह चेतावनी उस
कर्मचारी की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में शामिल की जाएगी।
(ग)
किसी कर्मचारी का कामकाज संतुष्टिजनक न होने की स्थिति में, उस कर्मचारी के
कार्य व्यवहार में सुधार आने की स्थिति तक, ग्राम सभा उस कर्मचारी का वेतन
रोकने का फैसला ले सकती है। यदि कर्मचारी का वेतन ब्लॉक या ज़िला स्तर की
पंचायत द्वारा दिया जाता है तो, ग्राम सभा सम्बंधित संस्था को इसका निर्देश
दे सकती है।
(घ) यदि कर्मचारी का व्यवहार खराब रहता है तो ग्राम सभा,
उसे समुचित सुनवाई का अवसर देते हुए, उस पर आर्थिक जुर्माना लगाने का
निर्णय ले सकती है।(ड़) यदि कर्मचारी ग्राम सभा के अधीन है तो ग्राम सभा ऐसे कर्मचारी को नौकरी से निकाल सकती है।8-यदि
ग्राम सभा के पास किसी प्रकार की अनियमितता की जानकारी पहुंचती है या किसी
अन्य कारण से, ग्राम सभा चाहे तो किसी मामले में जांच करा सकती है। ग्राम
सभा चाहे तो इस जांच के लिए अपनी कोई समिति बना सकती है अथवा, किसी सक्षम
अधिकारी को जांच के लिए कह सकती है जो एक निश्चित समय सीमा के भीतर जांच
रिपोर्ट ग्राम सभा को सौंपेगी। ग्राम सभा इस रिपोर्ट को पूर्णत: अथवा आंशिक
रूप से स्वीकार या खारिज कर सकती है या उस पर यथोचित कदम उठा सकती है।
9- राज्य सरकार ग्राम सभा को कार्यालय चलाने के लिए अलग से पैसा उपलब्ध् कराएगी।10- ग्राम सभा के कार्य:-
(क)
वार्षिक योजना:- राज्य सरकार के बजट में प्रत्येक ग्राम ब्लॉक और जिला
स्तर पंचायत को, राज्य वित्त आयोग द्वारा निर्धारित फॉर्मूला के अनुसार,
धनराशि उपलब्ध् कराई जाएगी। ग्राम सभा अपने गांव के लिए वार्षिक योजना
बनाएगी। ब्लॉक और जिला स्तर, उस क्षेत्र की ग्राम सभाओं के सुझावों के
अनुरुप योजनाएं बनाई जाएंगी। योजनाएं बनाने में प्राथमिकता तय करने का
कार्य आपसी सहमति के आधार और सहमति नहीं बनने के हालत में मतदान के जरिए
किया जाएगा।
(ख) ग्राम में होने वाले किसी भी काम के लिए भुगतान ग्राम
सभा की संतुष्टि बिना नहीं किया जाएगा। यदि ग्राम सभा किसी परियोजना या
कार्य से असंतुष्ट हो तो वह भुगतान रोक सकती है, साथ ही खराब कार्य किए
जाने का कारण जानने के लिए जांच करा सकती है और इसके लिए जवाबदेही तय कर
सकती है।
(ग) ग्राम सभा ये सुनिश्चित करेगी कि गांव में कोई भूखा न रहे,
हरेक बच्चा स्कूल जाए और सभी को आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध् हों।
इन कार्यों से सम्बंधित योजनाओं और खर्च को ग्राम ब्लॉक और ज़िला स्तर के
बजट में प्राथमिकता दी जाएगी। इन कार्यों के लिए ग्राम सभा, केवल राज्य
सरकार के बजट पर ही निर्भर नहीं रहेगी। एक समाज के तौर पर यह गांव की
ज़िम्मेदारी होगी कि कोई भूखे पेट न सोए, सबके पास एक घर हो, हरेक बच्चा
स्कूल जाता हो। आवश्यकता पड़ने पर ग्राम सभा इसके लिए अनुदान भी इकट्ठा कर
सकती है।
(घ) सभी को रोज़गार सुनिश्चित करने के लिए ग्राम सभा सभी कदम
उठाएगी। पंचायत कार्यों के लिए भुगतान की जाने वाली मजदूरी भी ग्राम सभा ही
तय करेगी। हालांकि यह राज्य सरकार द्वारा तय की गई न्यूनतम दैनिक मजदूरी
से कम नहीं होगी। ग्राम सभा लोगों को कोई छोटा धंधा शुरु करने के लिए लोन
भी दे सकती है या सहकारिता के आधार पर कोई छोटा उद्योग शुरु करने का फैसला
ले सकती है या रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए अन्य कोई कदम उठा सकती है।(
च)
ऐसे कर जो ग्राम स्तर पर आसानी से वसूले जा सकते हैं उन्हें ग्राम स्तर पर
ही वसूला जाएगा, इसी प्रकार ब्लॉक और ज़िला स्तर पर आसानी से इकट्ठा किए
जा सकने वाले करों की वसूली भी ब्लॉक एवं ज़िला पंचायतों द्वारा की जाएगी।
कुछ कर राज्य सरकार लगाएगी लेकिन उसकी वसूली पंचायत, ब्लॉक या जिला स्तर पर
की जाएगी। वहीं, कुछ कर राज्य सरकार द्वारा ही लगाए एवं वसूले जाएंगे। कुछ
कर ग्राम, ब्लॉक या जिला स्तर की पंचायतों द्वारा भी लगाए और वसूले जा
सकते हैं। ऐसे करों की एक सूची बना कर राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित की
जाएगी।
(छ) कृषि उत्पाद मार्केटिंग व्यवस्था और इससे प्राप्त राजस्व पर सीधे ग्राम सभा का ही नियंत्रण होगा।
(ज)
ग्राम सभा केवल निर्णय लेगी। उसके क्रियान्वयन या निगरानी सीधे उससे
लाभान्वित समूह करेगा। ऐसे लोगों की सभाएं लाभान्वितों की सभा कहलाएंगी और
किसी भी मामले की लाभान्वित सभा के निर्णय भी ग्राम सभा की ही तरह मान्यता
प्राप्त एवं अधिकृत होंगे।
(झ) राशन दुकान और केरोसीन डिपो का लाइसेंस
निरस्त करने और नया लाइसेंस जारी करने का अधिकार भी उस मामले की लाभान्वित
सभा के पास रहेगा।
(ट) जरूरत के हिसाब से ग्राम सभा, ब्लॉक या जिला
पंचायतें अपने-अपने स्तर पर अतिरिक्त कर्मचारियों जैसे शिक्षक इत्यादि की
नियुक्ति कर सकती है एवं नियुक्ति के लिए समुचित नियम शर्तों का निर्धारण
भी कर सकेंगी।
(ठ) ग्राम सभा की प्रत्येक बैठक में आखिरी एक घंटे का समय
लोगों की व्यक्तिगत शिकायतों को सुनने, उन पर चर्चा करने और उनके समाधान
के प्रयास करने के लिए निर्धारित रहेगा।
(ड) ग्राम सभा की 90 प्रतिशत
महिला सदस्यों की सहमति के बिना शराब दुकान का लाइसेंस नहीं दिया जाएगा।
ग्राम सभा क्षेत्र में चल रही किसी शराब दुकान का लाइसेंस उस ग्राम सभा की
महिला सदस्यों के साधारण बहुमत से भी निरस्त किया जा सकेगा।
(ढ़) ग्राम
सभा के अधीन भूमि क्षेत्र में किसी औद्योगिक या खनन इकाई लगाने से पहले
सम्बंधित ग्राम सभा की अनुमति लेना ज़रूरी होगा। अनुमति देते हुए ग्राम सभा
शर्तें भी लगा सकती है। किसी भी शर्त के उल्लंघन होने पर ग्राम सभा को
अनुमति निरस्त करने का अधिकार होगा।
(त) ग्राम सभा की सहमति के बिना
राज्य सरकार किसी भी जमीन का अधिग्रहण नहीं कर सकेगी। भू-अधिग्रहण कानून के
संदर्भ में ग्राम सभा ही (राज्य) के अधिकार प्राप्त होंगे। ग्राम सभा ही
भू-अधिग्रहण के लिए नियम और शर्त का निर्धारण करेगी।
(थ) भू-उपयोग में बदलाव भी ग्राम सभा ही तय करेगी।
(द) सभी भूमि हस्तांतरण और सम्बंधित रिकॉर्ड की देख-रेख ग्राम सभा ही करेगी।
(ध्)
ग्राम सभा का अपने क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर पूरा सामुदायिक
नियंत्रण होगा जिस प्रकार पैसा के तहत आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम सभाओं
के पास हैं। पंचायत क्षेत्र में आने वाले सभी प्राकृतिक संसाधन ग्राम सभा
के अधीन होंगे।
(न) यदि किसी राज्य में 5 प्रतिशत या उससे अधिक ग्राम
सभाएं किसी कानून का प्रस्ताव देती हैं तो राज्य सरकार उस कानून की प्रति
सभी ग्राम सभाओं के पास उनकी सहमति के लिए भेजेगी। यदि 50 प्रतिशत से
ज्यादा ग्राम सभा इस प्रस्ताव को पारित कर देती है तो राज्य सरकार को वह
कानून पास करना होगा। इसी प्रकार ग्राम सभाओं के पास किसी कानून को पूर्णत:
या आंशिक तौर पर निष्प्रभावी करने का अधिकार भी होगा।
(प) ग्राम सभा और
पंचायत के सदस्यों को, किसी भी सरकारी कर्मचारी से, अपने गांव से
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सम्बंधित, सूचना प्राप्त करने का अधिकार होगा।
ग्राम सभा इस प्रकार सूचना न उपलब्ध् करने वाले कर्मचारी पर 25000 रुपये
तक का जुर्माना लगा सकती है।
11- ब्लॉक और जिला स्तर
पंचायत के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव होगा। किसी ब्लॉक के सभी सरपंच ब्लॉक
पंचायत के सदस्य होंगे और अपने में से एक का चुनाव ब्लॉक अध्यक्ष पद के लिए
कर सकेंगे। सभी ब्लॉक अध्यक्ष जिला पंचायत के सदस्य होंगे और अपने में से
किसी एक को जिला अधीक्षक के तौर पर चुनेंगे। सरपंच का कार्य ब्लॉक और गांव
के बीच सेतु की भूमिका निभाना होगा। वह ग्राम सभा के निर्णय को ब्लॉक तक और
ब्लॉक के निर्णय को ग्राम सभा तक पहुंचाएगा। सरपंच के माध्यम से ग्राम सभा
ब्लॉक की गतिविधियों पर नियंत्रण रखेगी। इसी तरह ब्लॉक अध्यक्ष, ब्लॉक और
जिले के बीच सेतु का काम करेगा यानि ब्लॉक के निर्णय को जिला पंचायत तक और
जिला पंचायत के निर्णय को ब्लॉक पंचायत तक पहुंचाएगा। सरपंच, ब्लॉक और जिला
अध्यक्ष, क्रमश: ग्राम, ब्लॉक और जिला सभाओं की बैठकों की भी अध्यक्षता
करेंगे।
12- कोई भी ग्राम सभा ब्लॉक या जिला पंचायत को
किसी मुद्दे या परियोजना पर विचार के लिए कह सकती है। ब्लॉक या जिला
पंचायत स्वयं भी अथवा राज्य और केंद्र सरकार के सुझावों पर कोई परियोजना या
मुद्दा उठा सकती है। किसी भी मुद्दे या परियोजना को समस्त सम्बंधित विवरण
के साथ तथा उसके बारे में ब्लॉक या जिला पंचायत की राय के साथ, उस क्षेत्र
की सभी ग्राम सभाओं में उनकी राय जानने ले लिए वितरित किया जाएगा।
सामान्यत: किसी मुद्दे पर कोई निर्णय लागू किए जाने से पहले, उससे प्रभावित
होने वाली ग्राम सभाओं की सहमति आवश्यक होगी।
13-
वापस बुलाने का अधिकार- यदि ग्राम किसी सभा के एक तिहाई सदस्य, लिखित रूप
से, राज्य निर्वाचन आयोग को सरपंच अपने गांव के सरपंच के प्रति अविश्वास का
नोटिस देते हैं तो आयोग उस नोटिस की सत्यता की जांच कराएगा तथा सत्य पाए
जाने पर, नोटिस प्राप्त होने के एक महीने के अंदर, गुप्त मतदान कराएगा कि
क्या ग्राम सभा के लोग सरपंच को हटाना चाहते हैं।
14-
रिकॉर्डस में पारदर्शिता- गांव, ब्लॉक या जिला पंचायत के सभी आंकड़े
सार्वजनिक होंगे। प्रत्येक सप्ताह दो निर्धारित दिवसों पर, निश्चित समय पर
कोई भी व्यक्ति बिना आवेदन दिए इन रिकॉर्डस को देख सकता है। यदि कोई
रिकॉर्ड की कॉपी चाहता है तो वह निरीक्षण के बाद इसके लिए एक आवेदन दे सकता
है। आवेदन देने के एक सप्ताह के भीतर साधारण फोटोकॉपी शुल्क ले कर वह
रिकार्ड उपलब्ध् करा दिया जाएगा।
15- जिला स्तर पर
लोकपाल का गठन -हरेक जिले में एक लोकपाल होगा जो पंचायती राज कानून से
सम्बंधित विवाद और समस्याओं का निपटारा करेगा, साथ ही पंचायती राज कानून के
प्रावधानों का लागू होना सुनिश्चित कराएगा। इसके पास पर्याप्त अधिकार
होंगे ताकि अपने आदेशों को लागू करवा सके। साथ ही कर्मचारियों के खिलाफ
सम्मन जारी कर सके। ओंबड्समैन का चुनाव पूर्णत: पारदर्शिता और सहभागिता की
प्रक्रिया से होगा। इसके लिए आवेदन मंगाए जाएंगे। सभी आवेदनों पर जनता की
राय जानने के लिए इसे वेबसाइट पर डाल दिया जाएगा। इसके बाद जन सुनवाई में
सभी आवेदक जनता के सवालों का जवाब देंगे। राज्य के प्रख्यात लोगों
(राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता) की एक कमेटी बनाई जाएगी जो
सभी आवेदनों की जांच कर राज्यपाल के पास किसी एक नाम की सिफारिश करेंगे
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" लोकसभा न विधान सभा , सबसे ऊँची ग्राम सभा "
गांव
तो जैसे पहले अंग्रेजो के समय में गुलाम था आज भी वैसे ही गुलाम है। सरकार
ने जो हुकुम दे दिया वो ग्राम सभा का काम है और जो हुकुम नहीं दिया वो
ग्राम सभा का काम नहीं। ये कानूनी व्यवस्था अंग्रेजों ने इसलिए बनाई थी कि
उनका साम्राज्य कभी टूटे नहीं। इसके बावजूद आज़ादी की लड़ाई में आप देखेंगे
कि सबसे ज्यादा योगदान गाँव समाज का ही है। संयुक्त परिवार थे, गांव समाज
में जिसके दिमाग में भी आया वो चल दिया, घर के बाकी लोगों ने मिलकर उसके
परिवार की ज़िम्मेदरई निभाई। समाज टूट नहीं पाया अंग्रेजों के बावजूद और
आज़ादी आई।
खैर, जब संविधान बन रहा था तब गाँधी जी ने राजेन्द्र
प्रसाद से कहा था कि इस संविधान में गांव और किसान के बारे में क्या लिखा
है? राजेन्द्र जी ने बताया इसमें तो दोनों में से किसी के बारे में नहीं
लिखा है। तब गाँधी जी ने पूछा कि ये किसका संविधान है? जिसमें समाज के लिए,
किसान के लिए कोई स्थान नहीं तो वो संविधान भारत का कैसे हो सकता है? उसके
बाद गाँधी जी ने “हरिजन´´ में एक लेख लिखा। उसके बाद कांग्रेस ने प्रस्ताव
पास किया कि इसके लिये स्थान बनाया जाए। तब जाकर संविधान में अनुच्छेद 40
जिसमें पंचायती राज की बात है, उसको उसको रखा गया। बाद में संविधान सभा
में उस पर बहस हुई। अन्त में जाकर ये बात तय हुई कि हर गांव जो है वो
गणराज्य के रूप में कार्य करेगा। जब गाँधी जी से पूछा गया कि आपके सपने का
भारत क्या है? तो उन्होंने बताया कि “60 लाख गांव गणराज्य राज्य का
महासंघ´´. तो अनुच्छेद 40 जो रखा गया तो उसमें कई बुनियादी बातें फिर से
आई। एक बात ये आई कि इसमें हम गांव गणराज्य कि बाते कर रहे हैं पर इसमें तो
केन्द्रीकृत व्यवस्था है. तो ये केन्द्रीकृत व्यवस्था ऊपर रहेगी या गांव
गणराज्य? क्या इसमें ग्राम गणराज्य व्यवस्था ऊपर रह सकेगी? तो इसमें
राजेन्द्र प्रसाद जी ने गलती स्वीकार की। उन्होंने कहा था कि “संविधान बनाए
ही नहीं जाते संविधान बनते भी है अपने आप… जैसे जैसे हम चलेंगे धीरे-धीरे
ये केन्द्रीकृत व्यवस्था कमजोर हो जायेगी और व्यवस्था अकेन्द्रीकृत होती
रहेगी और हम सही आदर्श लोकतान्त्रिक व्यवस्था की ओर बढ़ेंगे… और गांव को अगर
हम केन्द्र में लाते हुए संविधान बनाएंगे तो संविधान बनाने में बहुत देर
हो जायेगी।´´ संविधान सभा में ये स्वीकार हुआ कि अनुच्छेद 40 में गांव
गणराज्य जैसी व्यवस्था होगी लेकिन वो नहीं हुआ। उसमें एक शब्द की वजह से
तमाम चक्कर पड़ गया। अनुच्छेद 40 अगर आप देखेंगे कि राज्य ऐसी पंचायतों का
गठन करेगा और उनको ऐसी शक्तियां प्रदान करेगा जो उनको स्वायत्त रूप में काम
करने के लिए जरूरी है। पंचायत शब्द जब गांव में इस्तेमाल होता था तो उसका
मतलब होता था गांव के सभी लोग। कभी हमारे गांवों में पंचायत शब्द गांव की
चुनी हुई सभा के रूप में नहीं हुआ। लेकिन अब संविधान में व्यवस्था आ गई और
(फिर कानून भी बन गया) और पंचायत का मतलब चुने हुए लोगों की पंचायत हो गया
और ग्राम सभा उसमें पीछे छूट गई। इसके बाद कई जगहों पर ग्राम सभाओं का
उल्लेख आया। सबसे पहले बलवन्त राय मेहता कमेटी ने स्पष्ट रूप से लिखा कि
“ग्राम सभाओं को दायित्व दिये जा सकते हैं जिम्मेदारी नहीं।´´ इसी तरह अशोक
मेहता कमेटी बनी जिसमें उस समय के काफी दिग्गज लोग शामिल थे। मैं उस समय
में भारत सरकार में गृह मन्त्रालय में था। मैं उस कमेटी में गया और मैनें
अपने आदिवासी क्षेत्रा के अनुभव के आधार पर कहा कि ग्राम सभा की केन्द्रीय
भूमिका होनी चाहिए क्योंकि ये आदिवासी क्षेत्र में सामान्य बात है कि चुनी
हुई चीज कुछ नहीं होती सब लोग इकट्ठा होते है। और अपनी व्यवस्था स्वयं करते
है, उसमें किसी के दखल की जरूरत नहीं पड़ती हैं, कुछ गलतियां है जिसको
सुध्रना भी चाहिए. जैसे अनुच्छेद 40 मे लिखा है कि “राज्य पंचायतों को
बनाएगा और उसको अधिकार देगा´´। दुर्भाग्य से अशोक मेहता कमेटी ने भी ये बात
नहीं मानी और ये लिखा कि “ग्राम सभाओं को कुछ कर्तव्य दिये जा सकते है
अधिकार नहीं।´´ इसके बाद सिद्वराज ढड्ढा जी ने विरोध् करते हुए नोट लिखा कि
“अगर ये व्यवस्था ग्राम सभा के दायरे में नहीं होती है तो ये लोकतन्त्र के
लिए सबसे घातक होगा।´´ इसके बाद राजीव गाँधी के समय में संविधान संशोधन
का प्रस्ताव आया तो उसमें भी ग्राम सभा की बात नहीं थी। बाद में ग्राम
सभाएं आई। अनुच्छेद 273 में लिखा गया कि “ग्राम सभाओं को राज्य का
विधनमण्डल वह अधिकार देगा जिससे कि वो स्वायत्त शासन की इकाई के रूप में
काम कर सके´´। यहां पर भी वही बात है कि विधानमण्डल ही ताकत देगा कि ग्राम
सभाओं को ताकत दी जाए या नहीं। हमारी जो व्यवस्था है वो इस भ्रम है कि वो
ग्राम सभाओं को ताकत देगा। ग्राम सभाएं सिर्फ सिफारिश कर सकती हैं और उस पर
काम हो या न हो ये ग्राम पंचायत तय करेंगी। ग्राम सभाओं को कोई नहीं
चाहता है। इस पर दिल्ली युनिवर्सिटी की प्रोफेसर मैनन जैन ने एक कविता
लिख डाली कि “मुझे कोई नहीं चाहता, मुख्यमंत्री नहीं चाहता, मंत्री नहीं चाहता, कमिश्नर नहीं चाहता और तो और मेरा खुद सरपंच नहीं चाहता´´।
ग्राम सभाओं को इसलिए कोई नहीं चाहता कि उसमें झूठ नहीं चल सकता। गांव में
एक न एक ऐसा बावला जरूर होगा जो कि पिटता जाएगा और कहता जाएगा कि मैं तो
सच बोलूंगा। उसको चाहे कितने जूते लगाओ पर वो तो सच ही बोलेगा। इसीलिए
ग्राम सभाओं को नहीं चाहता। हमने कुछ गांवों में लोगों से सवाल पूछा कि
यदि दिल्ली खत्म हो जाए, चण्डीगढ़ खत्म हो जाये तो क्या गांव चलेगा? जवाब
मिला कि चलेगा। हमने पूछा कि चलेगा कि दौड़ेगा। तो लोगों ने माना कि दौड़ेगा।
गांव समाज राज्य की स्थापना से पहले से था। ये मानना कि राज्यों के बिना
ग्राम सभाएं नहीं चलेगी ये सब लोकतान्त्रिक व्यवस्था के खिलाफ है। ग्राम
पंचायत राज्य द्वारा बनाई गई है, मान लीजिए पंचायत राज कानून खतम हो जाता
है तो ग्राम पंचायत कहां रहेगी. ग्राम सभाएं तो रहेंगी ही। लोकतन्त्र की
पहली सीढ़ी ग्राम सभाएं ही है। इसीलिए हमारा नारा है-:
" लोकसभा न विधान सभा , सबसे ऊँची ग्राम सभा "